जब मैं चोटी थी, मैं मेरे दादा और दादी के साथ मंबई में रहेती थी। मेरी माँ बाप दुबई मे काम करते थे। मंबई में मैं ९ हवेलीयो के एक नगर मे रहेती थी। यहां मेरी ऊमर के बोहोत बच्चे थे। शाम को हम सब बहार आकर, आवाज और मस्ती करते थे। हर पवित्रता के लड़के औरे लडकीया ईक साथ खेलते थे।
१९९३ में मैं मंबई छोड़कर दुबई औरे कनाडा रहने के लिए गयी। २००५ में मैं छुट्टी के लिए मंबई गयी। दादा दादी अभी तक वहा रहते है। १५ साल के बाद ये नगर बहोत बदल गया है। मेरी सहेलीया और दोस्तो और ऊनके माँ बाप भी वहा नही रहते हे। वहा अभी नए लोक है। ईथ्ने बच्चे भी नही है। ये नगर अभी शाम को बोहोत शांत हे। जो भी बच्चे हे, बहार खेलने के लीए कोई अता नही। ईन दिनों में बच्चो को बहोत प्ढाई करना पडता है। जब मुझे ऊन दिनों की याद आती हे, मुजे खुशी होती हे और मैं जानथी हु की ईस नगर मे रहने का मोका मिलकर मैं बोहोत भाग्यवान हुं।
Tuesday, 13 March 2007
play days
Sunday, 11 March 2007
Namaste
अंग्रेजी हमारी पहेली बाशा हे, और ईस लिये मेरी हिन्दी ईतनी अचछी नही हे। अंग्रेजी और कोंकणी हमारी घर की बाशा हे। हिन्दी और मराठी मैने मंबई मे पदाई किई और मुजे ईन अधीन मे बुरा अंक मीलती थी। पता नही मै हिन्दी और मराठी में कैसी पास हो गई।
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